वसु बारस, जो हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है, दिवाली पर्व की शुरुआत के रूप में मनाया जाता है। यह दिन मुख्यतः गायों को समर्पित है, जिन्हें भारतीय संस्कृति में पवित्र और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। गायों की देखभाल और उनका सम्मान करना इस दिन का प्रमुख उद्देश है। वेदों और पुराणों में गायों का उल्लेख होता है और उनके द्वारा दिए गए उत्पादों जैसे दूध, घी और यहां तक कि गोबर का भी विशेष महत्व है।
वसु बारस को गोवर्धन पूजा के नाम से भी जाना जाता है। उक्त दिन को लेकर ऐसी धार्मिक मान्यता है कि भगवान कृष्ण ने इस दिन गोवर्धन पर्वत को उठाया था और गांववालों की रक्षा की थी। इसलिए यह त्योहार भगवान कृष्ण के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता प्रकट करने का एक माध्यम भी है। गायों के पूजा को अमूमन गो माता के रूप में देखा जाता है, जो हमारी 'माता' के समान मानी जाती हैं और समृद्धि और शुद्धता का द्वार खोलने का प्रतीक हैं।
वसु बारस भारतीय समाज में गोवंश के महत्व को दर्शाने का पर्व है। यह गायों के आर्थिक और सामाजिक महत्व को बढ़ाने का एक अवसर है। भारतीय समाज में गायों की उपयोगिता विभिन्न रूपों में झलकती है। दूध, घी और दही के रूप में पोषण के लिए, और गोबर का उपयोग ईंधन और खाद में करने की परंपरा ने उनसे हमारे जीवन के कई पहलुओं को जोड़ दिया है। गाय का सम्मानीय स्थान हमें याद दिलाने का कार्य करता है कि कैसे हर ग्रामीण और कृषि आधारित समाज इन पशुओं पर निर्भर करता है।
2024 में वसु बारस 31 अक्टूबर को मनाई जाएगी। इस दिन का पूजा-पाठ अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। गायों को विशेष रूप से तैयार किया जाता है, उन्हें पौष्टिक आहार, फूलमालाओं से सजाया जाता है। पूजा के दौरान गायों को दिशाएँ दिखाई जाती हैं, और उनके प्रति आदर प्रकट किया जाता है।
इस पर्व का महत्व सिर्फ धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमें हमारी पारंपरिक और सांस्कृतिक धरोहर से भी जोड़ता है। विशेष रूप से महाराष्ट्र और गुजरात में इस पर्व की व्यापक धूम होती है। यह समय किसी भी कृषक परिवार के लिए उमंग भरा होता है, जब वे अपने आर्थिक सामर्थ्य और ग्रामीण जीवन की धुरी गायों को सही मायने में पूजनीय मानते हैं।
आज के समय में जब विकास और विज्ञान ने बहुत सी चीजों को बदल दिया है, तब भी वसु बारस का महत्व वही है, जो वर्षों पहले हुआ करता था। यह हमें उस प्राचीन ज्ञान का स्मरण कराता है कि कैसे प्राकृतिक और पशु संसाधनों का सम्मान और आभार व्यक्त करना सहयोगात्मक विकास का रास्ता खोलने में मदद करता है।
वसु बारस की ये परंपरा हमें एक महत्वपूर्ण संदेश देती है: कि हमें न केवल अपनी जरूरतों के लिए प्रकृति पर निर्भर रहना चाहिए, बल्कि उनका संरक्षण और सम्मान भी करना चाहिए, जिसके लिए यह पर्व एक उत्तम अवसर प्रदान करता है।