नेपाल के नए 'प्रो-चाइना' प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली का भारत पर क्या असर होगा?
केपी शर्मा ओली ने चौथी बार नेपाल के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली है, जिसमें उनका 'प्रो-चाइना' रुख एक बार फिर से चर्चा में है। ओली का प्रशासन चीन के साथ मजबूत रिश्ते बनाने की दिशा में आगे बढ़ने का संकेत दे रहा है, जिससे भारत-नेपाल संबंधों में खटास आ सकती है। यह परिदृश्य भारत के लिए चिंताजनक हो सकता है, क्योंकि नेपाल पर चीन का बढ़ता प्रभाव क्षेत्रीय संतुलन को प्रभावित कर सकता है।
ओली के 'प्रो-चाइना' नीति का भारत पर असर
केपी शर्मा ओली की 'प्रो-चाइना' नीति नई दिल्ली के लिए एक बड़ी चुनौती हो सकती है। ओली ने अपने पिछले कार्यकालों में नेपाल की भारत पर निर्भरता को कम करने की कोशिश की थी और इस बार भी वे उसी दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं। नेपाल का उत्तर में समुद्र तक पहुँच प्राप्त करने की नीति आर्थिक नाकाबंदी के मामलों में प्रभावी साबित हो सकती है। इससे ऑटोनॉमस इकोनॉमिक पॉलिसी का निर्माण आसानी से हो सकता है, जो भारत की शक्ति और प्रभाव को कमजोर करने में मददगार साबित हो सकता है।
क्षेत्रीय शक्ति संतुलन में संभावित बदलाव
ओली के सत्ता में वापस आने के बाद, नेपाल का चीन के साथ संबंध और भी गहरे हो सकते हैं। यह कदम क्षेत्रीय शक्ति संतुलन को प्रभावित कर सकता है। चीन का नेपाल में बढ़ता प्रभाव भारत के लिए सुरक्षा चिंताएं उत्पन्न कर सकता है। भारत और चीन के बीच पहले से ही तनावपूर्ण संबंधों को देखते हुए, नेपाल-चीन संबंधों के मजबूत होने से क्षेत्र में और रणनीतिक तनाव बढ़ सकता है।
नेपाल के लिए चाहे फायदेमंद हो लेकिन भारत के लिए चुनौतीपूर्ण
ओली के 'प्रो-चाइना' रुख से नेपाल को अल्पकालिक फायदों की संभावना हो सकती है, जैसे कि चीन की वित्तीय और प्रौद्योगिकीय सहायता। लेकिन यह भारत के लिए दीर्घकालिक समस्याएँ उत्पन्न कर सकता है। नई दिल्ली को अपने पड़ोसी देश पर अन्य उपायों के जरिए अपना दबदबा बनाए रखना होगा क्योंकि नेपाल की बढ़ती चीन पर निर्भरता किसी भी क्षण भारत-नेपाल संबंधों को और अधिक जटिल बना सकता है।
नेपाल भारत और चीन के बीच में किस प्रकार अपने संबंधों का संतुलन साधेगा?
केपी शर्मा ओली का चौथी बार प्रधानमंत्री बनना, खासकर उनके 'प्रो-चाइना' रुख के साथ, नेपाल के लिए एक चुनौतीपूर्ण स्थिति हो सकती है। भारत और चीन उसके दो महत्वपूर्ण पड़ोसी हैं, जिनके साथ संबंध संतुलित रखना उसकी प्राथमिकता होनी चाहिए। ओली के पास अब एक अवसर है कि वे नेपाल को दोनों देशों के बीच एक पुल की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं, जिससे वह दोनों शक्तियों के बीच अपने राष्ट्रीय हितों को साध सके।
नई दिल्ली की प्रतिक्रिया
भारत सरकार ने अब तक ओली के शपथ ग्रहण पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि नई दिल्ली अपनी रणनीति पर पुनर्विचार कर सकती है। भारत को नेपाल के साथ अपने संबंधों को स्थायितता देने के लिए नए सिरे से प्रयास करने होंगे, ताकि भारत और नेपाल के बीच का सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंध बरकरार रहे।
नेपाल-चीन-भारत त्रिकोण में बदलते समीकरण
नेपाल में ओली की सत्ता में वापसी से नेपाल-चीन-भारत त्रिकोणीय संबंधों में नए समीकरण बन सकते हैं। चीन से वित्तीय निवेश और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के जरिए नेपाल अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत कर सकता है। इससे नेपाल को अपने बुनियादी ढांचे को विकसित करने में सहूलियत मिलेगी। हालांकि, भारत को इस स्थिति में कोई कमजोरी नहीं दिखानी चाहिए। भारत को नेपाल में अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए और मजबूत आर्थिक, सांस्कृतिक और रणनीतिक संबंध स्थापित करने की जरूरत है।
ओली की 'प्रो-चाइना' नीति ने एक बार फिर से नेपाल-भारत संबंधों में तनाव की संभावना को बढ़ा दिया है। ऐसे में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि भारत कैसे अपनी रणनीति को बदलता है और नेपाल के साथ अपने संबंधों को और मजबूत बनाता है।
Chirag Desai
जुलाई 16, 2024 AT 01:55Uday Teki
जुलाई 16, 2024 AT 08:05Hardeep Kaur
जुलाई 18, 2024 AT 02:02Ira Burjak
जुलाई 18, 2024 AT 10:32Abhi Patil
जुलाई 19, 2024 AT 20:02Prerna Darda
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जुलाई 21, 2024 AT 12:13rohit majji
जुलाई 22, 2024 AT 12:02Shardul Tiurwadkar
जुलाई 23, 2024 AT 19:11Haizam Shah
जुलाई 24, 2024 AT 16:06Abhijit Padhye
जुलाई 25, 2024 AT 09:23Devi Rahmawati
जुलाई 27, 2024 AT 01:22