वक्फ संशोधन बिल में बदलाव की प्रक्रिया
संवेदनाओं और राजनीति का मिश्रण वक्फ संशोधन बिल के इर्द-गिर्द घिरता जा रहा है। वक्फ संशोधन बिल में प्रस्तावित संशोधनों को लेकर जम्मू-कश्मीर सहित भारत भर में विपक्षी दलों के बीच असंतोष और बहस छिड़ी हुई है। संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की अध्यक्षता में बिल में कुल 44 संशोधनों पर गहन विचार-विमर्श किया गया। 6 महीने से चल रहे इस विवरणात्मक चर्चा में 34 बैठकों में 108 घंटे से भी ज़्यादा का समय लगा, जिसमें विभिन्न पक्षकारों से 284 बार चर्चा की गई।
जेपीसी ने 14 संशोधनों को ध्वनिमत से पारित कर दिया, वहीं 10 सदस्य इसके खिलाफ में रहे। प्रस्ताव पारित करने को लेकर जेपीसी चेयरमैन जगदंबिका पाल ने कहा कि इस निर्णय पर गहन चर्चा के बाद सहमति बनी है। संशोधनों के तहत, राज्य सरकार के नामित अधिकारी को अब यह तय करने का अधिकार होगा कि कौन सी संपत्ति वक्फ है, न कि जिला कलेक्टर को। साथ ही केंद्र और राज्य वक्फ बोर्ड में दो नामित सदस्यों का गैर-मुस्लिम होना अनिवार्य बनाया गया है।
विपक्ष की प्रतिक्रिया
बिल पारित होने के तरीके और उसके असर को लेकर विपक्ष के तेवर जरूर सख्त हैं। तृणमूल कांग्रेस के सांसद कल्याण बैंर्जी ने आरोप लगाया कि जेपीसी चेयरमैन ने लोकतंत्र को समाप्त कर दिया है। कांग्रेस के सांसद नसीर हुसैन ने कहा कि अधिकांश पक्षकार जिन्होंने जेपीसी बैठकों में भाग लिया, वे इस बिल के खिलाफ हैं। समाजवादी पार्टी के सांसद मोहिबुल्लाह ने इसे देश और वक्फ बोर्ड के साथ मजाक करार दिया, जबकि शिवसेना (यूबीटी) के सांसद अरविंद सावंत ने बैठक में होने वाले क्लॉज-बाय-क्लॉज चर्चा का मुद्दा भी उठाया।
संशोधित वक्फ बिल की असंगतियां और प्रभाव
संशोधित वक्फ बिल को लेकर जम्मू-कश्मीर में कुछ मुस्लिम संगठनों का कहना है कि यह संशोधन मुस्लिम समुदाय की संपत्तियों पर उनके अधिकार को सीमित कर सकते हैं। वे इसे न केवल समुदाय के अधिकार के खिलाफ बता रहे हैं, बल्कि संघीय ढांचे पर भी प्रहार मानते हैं। इसके अलावा, अनेक सामाजिक और राजनीतिक संगठन भी इसे धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ कदम मान रहे हैं।
कांग्रेस के सांसद इमरान मासूद ने इसके बारे में बोलते हुए कहा कि यह नया कानून वक्फ को पूरी तरह से बर्बाद कर देगा। इसके प्रभाव से मुस्लिम समुदाय को भारी नुकसान होने की संभावना है, क्योंकि यह उनकी भूमि और संपत्ति अधिकारों को जोखिम में डाल सकता है।
आगे की राह
जेपीसी की अंतिम रिपोर्ट 29 जनवरी को जारी होने की संभावना है। विपक्षी दल इस फैसले के खिलाफ अपना असहमति नोट प्रस्तुत करने की घोषणा कर चुके हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि इस विवदित प्रस्ताव का भविष्य क्या होता है और भारतीय राजनीतिक परिदृश्य पर इसके क्या प्रभाव पड़ेंगे। जरूरत है कि वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन का यह महत्वपूर्ण मसला राजनीति की जगह समुदाय के हित में निदान किया जाए।
Tarun Gurung
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