आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम 2014 के तहत, हैदराबाद को दस साल के लिए आंध्र प्रदेश और तेलंगाना दोनों की संयुक्त राजधानी के रूप में निर्धारित किया गया था। इस अवधि के दौरान दोनों राज्यों को अपनी नई राजधानी बनाने का समय दिया गया था। 2 जून 2024 को यह अवधि समाप्त हो जाएगी और हैदराबाद तेलंगाना की एकमात्र राजधानी बन जाएगा। तेलंगाना के मुख्यमंत्री ए रेवंत रेड्डी ने अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे उन भवनों को वापस ले लें जो आंध्र प्रदेश को आवंटित किए गए हैं।
विभाजन के बाद के दस वर्षों में तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के बीच कई मुद्दे बने रहे। इनमें मुख्य रूप से सम्पत्ति का बंटवारा, सरकारी कर्मचारियों का स्थानांतरण और जल संसाधनों का वितरण शामिल है। दोनों राज्यों के बीच अब भी कई विवाद उठते रहते हैं जिनका अभी तक समाधान नहीं हुआ है।
तेलंगाना सरकार इस अवसर को विशेष बनाने के लिए एक दिवसीय समारोह का आयोजन कर रही है। विपक्षी दल बीआरएस ने भी तीन दिवसीय कार्यक्रम की योजना बनाई है, ताकि राज्य की उपलब्धियों को दर्शाया जा सके। इन समारोहों में विशेष अतिथि के रूप में कांग्रेस की वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी को आमंत्रित किया गया है।
राजधानी के मुद्दे पर यह फैसला सरकार के लिए एक बड़ा कदम है, लेकिन इससे कुछ चुनौतियां भी सामने आ सकती हैं। आंध्र प्रदेश को अब अपनी नई राजधानी अमरावती को पूरी तरह विकसित करना होगा, जिसमें समय और संसाधनों की आवश्यकता होगी। तेलंगाना सरकार को भी नई राजधानी में प्रशासनिक सेटअप को सुचारू रूप से स्थानांतरित करना होगा।
आंध्र प्रदेश और तेलंगाना का विभाजन भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण घटना थी। इस विभाजन ने न केवल भूगोल को बदला बल्कि लोगों की भावनाओं को भी प्रभावित किया। हैदराबाद दोनों राज्यों के लिए एक सांस्कृतिक और आर्थिक केंद्र रहा है, और इसे छोड़कर अन्य विकल्पों की तलाश करना एक कठिन प्रक्रिया होगी।
हैदराबाद के लोगों की प्रतिक्रियाएं मिश्रित रही हैं। कुछ लोग नए बदलावों का स्वागत कर रहे हैं, जबकि कुछ इसकी निंदा कर रहे हैं। अधिकांश लोग इस बात पर सहमत हैं कि यह बदलाव राज्य के लिए एक नया अध्याय खोल सकता है, लेकिन यह सुनिश्चित करना होगा कि यह परिवर्धन सुचारू और विवाद रहित हो।
आंध्र प्रदेश और तेलंगाना दोनों के लिए यह समय एक महत्वपूर्ण मौका है। उन्हें मिलकर उन समस्याओं का समाधान निकालना होगा जो विभाजन के बाद उत्पन्न हुई हैं और यह सुनिश्चित करना होगा कि दोनों राज्य आर्थिक और सामाजिक रूप से मजबूत बनें। दोनों सरकारों को एक-दूसरे के हितों को ध्यान में रखते हुए काम करना होगा, ताकि सभी के लिए एक समृद्ध भविष्य सुनिश्चित किया जा सके।