भारतीय हॉकी के 'दीवार' के नाम से मशहूर पीआर श्रीजेश आज पेरिस ओलंपिक्स में भारत के लिए अपना अंतिम मुकाबला खेलने वाले हैं। यह मुठभेड़ हॉकी प्रेमियों के लिए एक अत्यंत भावुक क्षण होगा क्योंकि उन्होंने पहले ही अपने संन्यास की घोषणा कर दी है। भारतीय हॉकी के इतिहास में उनका योगदान अभूतपूर्व है और उनकी कहानी काबिले तारीफ।
पीआर श्रीजेश ने 2006 में भारतीय टीम के लिए खेलना शुरू किया और शीघ्र ही वे गोलकीपर के रूप में सर्वोच्च खेल प्रदर्शन तक पहुँच गए। 2011 में उन्होंने आधिकारिक तौर पर भारत के 'नंबर 1' गोलकीपर के रूप में खुद को स्थापित किया। अपने करियर के दौरान, उन्होंने चार ओलंपिक खेलों में भाग लिया और टोक्यो ओलंपिक्स में ब्रॉन्ज मेडल जीता।
श्रीजेश के खेल करियर में उन्हें अनेक पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए। 2021 में उन्हें मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया और लगातार दो सालों (2021 और 2022) में FIH गोलकीपर ऑफ द ईयर अवार्ड भी मिला।
आज के मुकाबले में भारत स्पेन के खिलाफ खेलेगा, जो एक पदक के लिए निर्णायक मुठभेड़ होगी। इस मैच में भारत और श्रीजेश के प्रदर्शन पर सभी की नजरें होंगी। सेमीफाइनल में भारत को जर्मनी से हार का सामना करना पड़ा था, जिसमें मैच 3-2 के स्कोर पर समाप्त हुआ। परंतु, आज का मुकाबला निर्णायक साबित होगा।
श्रीजेश ने इस महत्वपूर्ण क्षण पर एक भावुक संदेश साझा किया। उन्होंने भारतीय जनता का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि उनके हर बचाव, डाइव और भीड़ की गर्जना हमेशा उनकी आत्मा में गूंजती रहेगी। उनके इस संदेश ने न केवल उनके प्रशंसकों को बल्कि समस्त भारतीय हॉकी समुदाय को प्रेरित किया है।
पेरिस ओलंपिक्स में श्रीजेश का प्रदर्शन उत्कृष्ट रहा है। उनके महान बचावों ने भारतीय टीम को महत्वपूर्ण स्थान पर बनाए रखा है। उनके इस आखिरी मैच में भी उनके प्रदर्शन से भारत को पदक दिलाने की प्रबल उम्मीद है।
श्रीजेश का योगदान भारतीय हॉकी को एक नई ऊंचाई पर ले गया है। उनके संघर्ष, उनकी निष्ठा और उनकी सफलता ने उन्हें एक महान खिलाड़ी के रूप में स्थापित किया है। वे भारतीय हॉकी के इतिहास में हमेशा याद किए जाएंगे। उनकी विरासत आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगी।
श्रीजेश की कहानी खेल जगत के हर खिलाड़ी के लिए एक प्रेरणादायक उदाहरण है। उनकी कहानी बताती है कि कैसे धैर्य और कड़ी मेहनत से सफलता पाई जा सकती है।