ईद-उल-अजहा का महत्व
ईद-उल-अजहा, जिसे बकरीद या कुर्बानी की ईद भी कहा जाता है, इस्लामिक कैलेंडर के सबसे पवित्र त्योहारों में से एक है। यह त्योहार उस दिन को याद करता है जब पैगंबर इब्राहीम ने अल्लाह की आज्ञा का पालन करते हुए अपने पुत्र इस्माइल की कुर्बानी देने की कोशिश की थी। यह त्योहार रमज़ान ईद के लगभग 70 दिनों के बाद आता है और इस्लामी कैलेंडर के अंतिम महीने धू अल-हिज्जा के दसवें दिन मनाया जाता है।
भारत में बकरीद का जश्न
भारत में इस वर्ष बकरीद 17 जून 2024 को मनाई जाएगी। इस दिन मुसलमान सुबह की नमाज़ के बाद जानवरों की कुर्बानी देते हैं, जिसे कुर्बानी कहते हैं। विशिष्ट रूप से बकरी, भेड़ या ऊंट की कुर्बानी दी जाती है और उनके मांस को परिवार, मित्रों और पड़ोसियों के बीच विभाजित किया जाता है। इस दिन सभी समुदाय के लोग एक दूसरे को बकरीद की मुबारकबाद देते हैं और त्योहार की खुशी साझा करते हैं।
बकरीद के रीति-रिवाज और परंपराएं
बकरीद के दिन की शुरुआत नमाज़ से होती है। मुस्लिम समुदाय के लोग सुबह जल्दी उठकर नहा-धोकर साफ कपड़े पहनते हैं और इदगाह या मस्जिद में नमाज़ अदा करने के लिए जाते हैं। नमाज़ के बाद जानवर की कुर्बानी दी जाती है। कुर्बानी के बाद जानवर के मांस को तीन हिस्सों में विभाजित किया जाता है। एक हिस्सा परिवार के लिए, दूसरा हिस्सा दोस्तों और पड़ोसियों के लिए और तीसरा हिस्सा गरीब और जरूरतमंद लोगों के लिए रखा जाता है। इस तरह मांस का बंटवारा किया जाता है ताकि हर कोई इस खुशी के मौके का आनंद उठा सके।
ईद-उल-अजहा पर संदेश और शुभकामनाएँ
इस त्योहार पर लोग एक दूसरे को शुभकामनाएं भेजते हैं। आज के डिजिटल युग में व्हाट्सएप, फेसबुक जैसी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर शुभकामनाएं भेजना आम हो गया है। कुछ लोकप्रिय संदेशों में शामिल हैं:
- हर ख्वाहिश हो मंजूर-ए-खुदा
- अल्लाह का रहम आप पर
- ईद-उल-अजहा की ढेर सारी मुबारकबाद
- कुर्बानी का यह पवित्र त्योहार आपके जीवन में खुशियाँ और समृद्धि लाए
समाज में भाईचारे का संदेश
ईद-उल-अजहा का त्योहार समाज में भाईचारे और एकता का संदेश देता है। यह त्योहार लोगों को एक साथ लाता है और उन्हें एक दूसरे के साथ खुशियाँ बाँटने का अवसर प्रदान करता है। यह न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। इस त्योहार के माध्यम से हम दूसरों की जरूरतों को समझने और उनकी मदद करने का संदेश प्राप्त करते हैं।
भविष्य की योजनाएं और संकल्प
हर साल की तरह इस साल भी लोग इस त्योहार को धूमधाम से मनाने की तैयारी कर रहे हैं। ऐसे में ये जरूरी है कि हम अपनी तैयारियों में खुशियों के साथ-साथ सुरक्षा का भी ध्यान रखें। कोविड-19 महामारी के बाद से हमें सतर्कता और स्वच्छता का पालन करना चाहिए ताकि त्योहार की खुशी में कोई कमी ना आए।
निष्कर्ष
ईद-उल-अजहा न केवल एक धार्मिक पर्व है बल्कि यह हमें अपनी ज़िम्मेदारियों और अपने कर्तव्यों की याद दिलाता है। यह त्योहार हमें सिखाता है कि किस तरह से हम अपने परिवार, दोस्तों और समाज के बीच मजबूत संबंध बना सकते हैं। इस बकरीद पर हर किसी को कुर्बानी और त्याग का सच्चा अर्थ समझने की जरूरत है ताकि हम सभी मिलकर एक बेहतर समाज का निर्माण कर सकें।
Rohan singh
जून 17, 2024 AT 22:29कुर्बानी का मांस तीन हिस्सों में बाँटना सिर्फ रिवाज नहीं, इंसानियत का असली रूप है।
Karan Chadda
जून 19, 2024 AT 07:59Shivani Sinha
जून 20, 2024 AT 01:17Tarun Gurung
जून 21, 2024 AT 11:07उन्होंने उसे कुर्बानी दी और मांस का आधा हिस्सा एक अजनबी परिवार को दे दिया जो बीमार था।
मैंने उस दिन सीखा कि त्याग नहीं, दया ही सच्ची इबादत है।
हर बकरी की कुर्बानी एक दिल को छू जाती है, बस हमें उसे देखना होगा।
ये त्योहार हमें याद दिलाता है कि अल्लाह को चाहिए नहीं, इंसानों को चाहिए।
हम जब दूसरों के लिए खुश होते हैं, तब अल्लाह हमें खुश करता है।
इस साल मैंने अपने शहर के एक अस्पताल में मांस भेजा।
एक बच्ची ने बस एक नज़र देखा और मुस्कुरा दी।
उस दिन मैंने समझा कि कुर्बानी का असली मतलब है दूसरों के लिए अपना जीवन बाँटना।
इस दिन बस फोटो नहीं, दिल भी खोलो।
इस बार अपने घर के बाहर भी एक दरवाजा खोलो।
कुर्बानी का मांस तो बाँट दो, लेकिन दया का बंटवारा भी कर दो।
ये ईद तो बस एक दिन की नहीं, बल्कि एक जीवन का संकल्प है।
हर ईद एक नया अवसर है कि हम अपने दिल को थोड़ा बड़ा कर लें।
Rutuja Ghule
जून 22, 2024 AT 09:25nasser moafi
जून 23, 2024 AT 11:55'हर ख्वाहिश हो मंजूर'... भाई ये तो जन्मदिन का भी है न?
Saravanan Thirumoorthy
जून 23, 2024 AT 22:04Tejas Shreshth
जून 24, 2024 AT 18:15Hitendra Singh Kushwah
जून 25, 2024 AT 06:55sarika bhardwaj
जून 27, 2024 AT 01:15Dr Vijay Raghavan
जून 27, 2024 AT 01:38Partha Roy
जून 27, 2024 AT 08:36