सॉवरेन वेल्थ फंड – क्या है, कैसे काम करता है और क्यों ज़रूरी है

जब बात सॉवरेन वेल्थ फंड, सरकार द्वारा स्थापित दीर्घकालिक निवेश निधि, जो राष्ट्रीय बचत को वैश्विक बाजार में सक्रिय रूप से प्रबंधित करती है. राष्ट्रीय संपत्ति कोष की होती है, तो आधे से ज्यादा लोग इसे सिर्फ बड़े पैमाने की पूंजी मान लेते हैं। असल में, यह फंड दो मुख्य चीज़ों को जोड़ता है – निवेश, विविध वर्ग‑असैट जैसे इक्विटी, बॉण्ड, रियल एस्टेट व बुनियादी ढाँचे में पूँजी लगाना और आर्थिक विकास, देश की जीडीपी, रोजगार सृजन और मौद्रिक स्थिरता को बढ़ावा देना। फंड का लक्ष्य सिर्फ रिटर्न कमाना नहीं, बल्कि सरकारी निधि, कर, विदेशी मुद्रा आरक्षित और सार्वजनिक संपत्ति से उत्पन्न पूँजी का बेहतर प्रबंधन के माध्यम से भविष्य के बड़े खर्च, जैसे सेवानिवृत्ति पेंशन या बुनियादी इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड को सुरक्षित करना है। इस तरह, सॉवरेन वेल्थ फंड राष्ट्रीय धन को वैश्विक बाजार में काम करके स्थिरता, जोखिम विविधीकरण और दीर्घकालिक रिटर्न हासिल करता है।

भारत में सॉवरेन वेल्थ फंड की संभावनाएँ और चुनौतियाँ

अगर हम भारत की आर्थिक स्थिति देखें तो विदेशी मुद्रा भंडार, आयात‑निर्यात सॅलेंस और सार्वजनिक‑निजी भागीदारी (PPP) की बढ़ती भूमिका के कारण वैश्विक बाजार, अमेरिकन, यूरोपीय और एशियाई शेयर‑बॉण्ड एक्सचेंज जहाँ फंड निवेश कर सकता है में प्रवेश का अवसर मिल रहा है। इस संदर्भ में, फंड को दो प्रमुख सिद्धान्तों को संतुलित करना पड़ेगा – जोखिम‑शमन और रिटर्न‑अधिकतम। उदाहरण के तौर पर, जब भारत में सोने की कीमतें (जैसे उत्तर प्रदेश में 1.22 लाख/10 ग्राम) बढ़ती हैं, तो फंड कमोडिटी पोर्टफ़ोलियो में सोना या चाँदी जोड़ सकता है, जिससे मुद्रास्फीति के विरुद्ध सुरक्षा मिलती है। इसी तरह, टाटा कैपिटल जैसी बड़े‑पैमाने की कंपनियों के IPO (₹15,512 crore) को इक्विटी हिस्से में शामिल करना फंड की रिटर्न प्रोफ़ाइल को विविध बनाता है। साथ ही, सरकारी नीतियों का प्रभाव भी बड़ा है। यदि बीडीटी ने कर‑ऑडिट की तिथि बढ़ाई (30 Sep → 31 Oct 2025) तो फंड को टैक्स‑ऑप्टिमाइज़ेशन हेतु अधिक समय मिलता है, जिससे शुद्ध रिटर्न में सुधार हो सकता है। इसके अलावा, भारतीय रेलवे, आईटी, और ऊर्जा सेक्टर में चल रहे प्रोजेक्ट्स (जैसे अदानी पावर का 1:5 स्टॉक स्प्लिट) फंड को बुनियादी ढाँचे के क्षेत्रों में स्थिर दीर्घकालिक निवेश का मौका देते हैं। इन सभी पहलुओं को मिलाकर कहा जा सकता है कि सॉवरेन वेल्थ फंड का लक्ष्य भारत की आर्थिक विकास को मजबूत बनाते हुए सरकारी निधि की सुरक्षा सुनिश्चित करना है। इस प्रक्रिया में फंड को बाजार‑उद्यम (जैसे IPO, बांड, रियल एस्टेट) और वस्तु‑व्यापार (जैसे धातु, ऊर्जा) दोनों को संतुलित करना पड़ता है। इन सबको समझना प्रतियोगी परीक्षा में भी फायदेमंद है क्योंकि बीजिंग, सिंगापुर और सऊदी अरब जैसे देशों के सॉवरेन फंड्स के केस स्टडी अक्सर GK और आर्थिक प्रश्नों में आते हैं। आप नीचे दी गई खबरों में देखेंगे कि कैसे विभिन्न क्षेत्रों में होने वाले बदलाव फंड के निर्णयों को प्रभावित करते हैं, जिससे आप परीक्षा में सामने आने वाले डेटा‑इटरेशन या केस‑बेस्ड प्रश्नों के लिए तैयार हो सकेंगे। अब नीचे आप देखेंगे उन लेखों की सूची जिनमें सोने‑चाँदी की कीमत, IPO, सरकारी नीतियों और अंतरराष्ट्रीय आर्थिक प्रवृत्तियों की विस्तृत जानकारी दी गई है। इन लेखों को पढ़ कर आप सॉवरेन वेल्थ फंड के काम‑काज, निवेश रणनीतियों और परीक्षा‑उन्मुख विश्लेषण को बेहतर ढंग से समझ पाएँगे।

कर छूट की नई दीर्घकालिक सुविधा: सॉवरेन वेल्थ और पेंशन फंड को 2030 तक मिल रही राहत
कर छूट की नई दीर्घकालिक सुविधा: सॉवरेन वेल्थ और पेंशन फंड को 2030 तक मिल रही राहत

CBDT ने सॉवरेन वेल्थ फंड और पेंशन फंडों के लिए भारत के इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश पर कर छूट की अवधि 31 मार्च 2025 से बढ़ाकर 31 मार्च 2030 कर दी। यह कदम विदेशी दीर्घकालिक पूँजी को आकर्षित करने और बिजली, सड़क, बंदरगाह जैसे मुख्य क्षेत्रों में निजी भागीदारी बढ़ाने के उद्देश्य से लिया गया है। खुलासे के अनुसार, लाभ केवल बड़े वैश्विक फण्डों के लिए है, परन्तु म्यूचुअल फंड और InvITs के माध्यम से भारतीय खुदरा निवेशकों को भी परोक्ष लाभ पहुंच सकता है। वित्तीय वर्ष 2025‑26 से इस प्रावधान को लागू किया गया है।

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