वित्त आयुक्त ने हाल ही में बताया कि केंद्रीय बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेस (CBDT) ने सेक्शन 10(23FE) के तहत सॉवरेन वेल्थ फंड (SWF) और पेंशन फंडों को मिल रही कर छूट को पाँच साल आगे बढ़ा दिया है। मूल रूप से यह छूट 31 मार्च 2025 को समाप्त होती थी, लेकिन वित्त अधिनियम 2025 के तहत इसे 31 मार्च 2030 तक विस्तृत किया गया। इस बदलाव से भारत में इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स में विदेशी पूँजियों का प्रवाह आसान हो जाएगा।
सेक्शन 10(23FE) का परिचय 2020 में हुआ था, जब सरकार ने विदेशी संस्थागत निवेशकों को आकर्षित करने के लिए डिविडेंड, ब्याज और दीर्घकालिक पूँजी लाभ पर कर मुक्त करने की योजना बनायी थी। अब इस योजना का दायरा बढ़ाकर अधिक समय के लिए लाभ सुनिश्चित किया गया है, जिससे निवेशकों को प्रोजेक्ट के लंबे gestation period को सहन करने में मदद मिलती है।
इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास के लिए बड़े पैमाने पर वित्तीय प्रतिबद्धताएँ जरूरी हैं, और इन प्रोजेक्ट्स का रिटर्न भी कई सालों में आता है। कर मुक्त रिटर्न निवेशकों के लिए कुल लागत को कम करता है, जिससे प्रोजेक्ट्स की वित्तीय आकर्षणीयता बढ़ती है। इस पहल से न केवल बड़े वैश्विक फंडों को आकर्षित करने की उम्मीद है, बल्कि भारतीय म्यूचुअल फंड, इंवेस्टमेंट ट्रस्ट (InvITs) और रियल एस्टेट इनवेस्टमेंट ट्रस्ट (REITs) की लिक्विडिटी में भी अस्थायी बढ़ोतरी हो सकती है।
श्वेता राजनी, जो Anand Rathi Wealth में म्यूचुअल फंड हेड हैं, के अनुसार यह कदम इन्फ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में अल्पकालिक तरलता का पूल बना सकता है। परंतु उनका मानना है कि रिटर्न या वैलुएशन पर दीर्घकालिक असर सीमित रहेगा, क्योंकि अधिकांश खुदरा निवेशक सीधे इन फंडों में नहीं बल्कि इंडेक्स‑आधारित फंडों के माध्यम से निवेश करते हैं।
वित्त अधिनियम 2025 में यह भी प्रावधान शामिल किया गया कि SWF और पेंशन फंड द्वारा किए गए निवेशों पर हुए दीर्घकालिक पूँजी लाभ को शॉर्ट‑टर्म कैपिटल गेन नहीं माना जाएगा। यह बदलाव Finance (No. 2) Act, 2024 में किए गए संशोधनों को उलटता है और 1 अप्रैल 2025 से लागू हो गया है।
इसे देखते हुए विशेषज्ञों ने कहा है कि अब भारत में इन्फ्रास्ट्रक्चर फाइनेंस का परिदृश्य अधिक स्थिर हो सकता है। फंड मैनेजर्स को अब लंबी अवधि की योजना बनाते समय कर की अनिश्चितता को लेकर कम चिंता होगी, और इससे प्रोजेक्ट्स की फंडिंग में सवालों के चक्र को तोड़ने में मदद मिलेगी।
अंततः यह विस्तार सरकार की बड़ी पूँजी को आकर्षित करने और इन्फ्रास्ट्रक्चर की वित्तीय लागत को घटाने की रणनीति को सुदृढ़ करता है। यदि फंडों ने इस नई छूट का पूरी तरह से उपयोग किया, तो अगले दशक में भारत की पावर ग्रिड, हाईवे नेटवर्क और बंदरगाहों के विकास में उल्लेखनीय गति आ सकती है।