जब हम पूजा विधि, धार्मिक अनुष्ठानों की क्रमबद्ध प्रक्रिया जो श्रद्धा और शुद्धि को जोड़ती है, भी कहा जाता है आर्चना के बारे में बात करते हैं, तो कई संबंधित घटक तुरंत याद आते हैं। सबसे पहले आरती, दीप जलाकर भगवान की प्रशंसा करने की विधि है, जो हर पूजा का अभिन्न हिस्सा है। इसके बाद हवन, अग्नि में समर्पित सामग्री जलाकर शुद्धिकरण करने की क्रिया आती है, जो वातावरण को शुद्ध करती है। अंत में ध्यान, मन को स्थिर करके अंतरात्मा से जुड़ने की प्रथा को अक्सर समापन में उपयोग किया जाता है। ये सब मिलकर पूजा विधि को पूर्ण बनाते हैं।
पूजा में मंत्र का प्रयोग अत्यंत आवश्यक है; वे ऊर्जा को केंद्रित करते हैं और इरादे को साकार बनाते हैं। सबसे आम वेदिक मंत्र, प्राचीन ग्रंथों से निकाले गए ऊँचे स्वर वाले जप को सुबह-शाम दोहराने से मन में शांति रहती है। इसके साथ संकल्प, पूजा से पहले किए जाने वाले निश्चय या प्रश्न लेना चाहिए, क्योंकि यह मन को एक दिशा देता है। आभिषेक, पवित्र जल या दूध से देवता को स्नान कराना भी अनिवार्य है; यह शारीरिक और आध्यात्मिक शुद्धि दोनों को जोड़ता है। इन तत्वों के बिना कोई भी पूजा अधूरी लगती है, क्योंकि प्रत्येक का अपना विशेष कार्य और प्रभाव है।
समय और स्थान भी पूजा विधि में बड़ी भूमिका निभाते हैं। मंदिर, सार्वजनिक पूजा स्थल जहाँ कई लोग एकत्रित होते हैं या घर का पूजा कक्ष, छोटा साफ-सुथरा कोना जहाँ दैनिक आरती की जाती है दोनों ही पवित्रता के केंद्र होते हैं। विशेष तिथियों—जैसे होली, दीपावली, या विशेष ग्रह संक्रमण—पर पूजा का महत्व और बढ़ जाता है, क्योंकि इन दिनों सूर्य, चंद्रमा या ग्रहों की ऊर्जा अनुकूल होती है। एक सही योगी इन दिनों को चुनकर अपने रीतियों को समायोजित करता है, जिससे परिणाम अधिक प्रभावी होते हैं।
अंत में, यह कहा जा सकता है कि सही पूजा विधि का अभ्यास जीवन में सकारात्मक ऊर्जा लाता है। जब आप आरती में दीप की रोशनी, हवन में अग्नि की गर्मी, और ध्यान में श्वास की स्थिरता को महसूस करेंगे, तो यह अनभुज्य अनुभव बन जाएगा। नीचे मिलने वाले लेखों में विभिन्न परम्पराओं, आसान चरणों और आधुनिक परिस्थितियों में अनुकूलन के तरीकों की विस्तृत जानकारी है। चाहे आप नई शुरुआत कर रहे हों या पुराने अभ्यास को अपडेट करना चाहते हों, इस संग्रह में हर स्तर के लिए कुछ न कुछ उपयोगी मिलेगा। आइए, आगे देखिए और अपनी पूजा विधि को और भी प्रभावी बनाइए।
Navratri 2025 के पाँचवें दिन, 26 सितंबर को माँ स्कंदमाता की पूजा विशेष महत्त्व रखती है। इस दिन भक्त हरा वस्त्र पहनकर ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कर देवी को अर्पित करते हैं। स्कंदमाता के बीज मंत्र और स्टुति के प्रयोग से मानसिक शांति, सफलता और संरक्षक प्रेम मिलता है। पूजन के दौरान लोटस, हरा फूल और दीपक का उपयोग अनिवार्य है।