केपी शर्मा ओली का नाम सुनते ही कई लोगों को नेपाल की राजनीति की धड़कन याद आती है। उन्होंने कई बार प्रधानमंत्री का पद संभाला और पार्टी में मुख्य भूमिका निभाई। अगर आप प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं, तो इनके बारे में जानना बेहद फायदेमंद हो सकता है।
ओली का जन्म २२ फरवरी १९५५ को काठमांडू के पास हुआ था। वह छात्र जीवन में ही राजनीति में रुचि ले लेते थे। १९७० के दशक में उन्होंने यूथ लीडरशिप ट्रेनों में हिस्सा लिया और धीरे‑धीरे नेपाल कांग्रेस से जुड़ गए। शुरुआती समय में उन्होंने स्थानीय मुद्दों को उठाया, जिससे जनता में उनका भरोसा बन गया।
वह १९९० के दशक में नेपाल के पहले बहुदलीय चुनावों में भाग लेने वाले प्रमुख नेताओं में से एक थे। इस दौरान उन्होंने लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत करने की कोशिश की और कई सामाजिक सुधारों को आगे बढ़ाया।
ओली पहली बार २००८ में प्रधानमंत्री बने, लेकिन उस अवधि में उनका कार्यकाल छोटा रहा। फिर २०१५ में बड़ी राजनीतिक अस्थिरता के बाद वे फिर से प्रधानमंत्री बने और देश को कई चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार किया। उनके प्रमुख निर्णयों में शामिल है:
इन निर्णयों ने नेपाल की अंतर्राष्ट्रीय छवि को थोड़ा सुधार दिया, लेकिन कई बार विरोध भी उत्पन्न हुआ।
ओली के शासनकाल में कुछ विवाद भी रहे, जैसे कि संविधान निर्माण प्रक्रिया में विवाद, प्रेस के साथ तनाव और मानवाधिकार समूहों द्वारा उठाए गए सवाल। फिर भी उनका नाम अक्सर "संस्थागत सुधार" और "रोज़गार सृजन" से जुड़ा रहता है।
अगर आप वर्तमान घटनाओं का पालन कर रहे हैं, तो यह देखना रोचक होगा कि उनका राजनीतिक असर अब भी कितना है। २०२१ के बाद के चुनावों में उन्होंने फिर से अपना पैर जमाया, लेकिन पार्टी के भीतर तेज़ी से बदलते समीकरणों ने उनकी स्थिति को चुनौती दी।
सारांश में, केपी शर्मा ओली एक ऐसा नेता हैं जो नेपाल की राजनीति में कई बार उभरे और गिरे। उनके कार्यकाल में आर्थिक विकास के कदम और सामाजिक सुधारों पर ध्यान दिया गया, लेकिन साथ ही कई विवाद भी उभरे। प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी में उनके करियर के मुख्य बिंदु याद रखें – जैसे उनका दो बार प्रधानमंत्री बनना, आर्थिक नीतियों में बदलाव, और राष्ट्रीय आपातकालीन प्रबंधन।
आखिरकार, नेपाल की राजनीति में उनका योगदान समझना आपके सामान्य ज्ञान को मजबूत बनाएगा और परीक्षा में पावरफुल एंट्री देगा।
केपी शर्मा ओली चौथी बार नेपाल के प्रधानमंत्री बने हैं। ओली को 'प्रो-चाइना' माना जाता है, जिससे नई दिल्ली की चिंताएं बढ़ गई हैं। ओली भारत की आलोचना करते रहे हैं और नेपाल की चीन पर निर्भरता बढ़ाने की दिशा में कदम उठाते रहे हैं। उनके कार्यकाल में नेपाल-चीन संबंध और मजबूत हो सकते हैं, जिससे क्षेत्रीय शक्ति संतुलन बदल सकता है।