गर्भपात का मतलब है गर्भधारण के शुरुआती चरण में ही बच्चा निकल जाना या डॉक्टर की मदद से उसे निकालना। यह अक्सर दो तरह से होता है – प्राकृतिक (स्पॉन्टेनियस) या मेडिकल (इंड्यूस्ड)। अधिकांश महिलाओं के लिए यह अचानक नहीं आता, लेकिन जानकारी और सही कदम जानना बहुत काम आता है।
गर्भपात के कई कारण हो सकते हैं। सबसे आम हैं हार्मोनल असंतुलन, जननांग संक्रमण, गंभीर बीमारी या तेज़ तनाव। कभी‑कभी गर्भ में बच्चे का क्रोमोसोमल समस्या भी इसको ट्रिगर कर देती है। अगर किसी महिला को पहले गर्भपात का इतिहास है, तो दोबारा होने की संभावना थोड़ी बढ़ जाती है।
आहार या जीवनशैली भी असर डालते हैं। बहुत ज्यादा शराब, धूम्रपान या अनियमित नींद शारीरिक संतुलन बिगाड़ देती है और गर्भ को नुकसान पहुंचा सकती है। इसी तरह दवाइयों का गलत इस्तेमाल या बिना परामर्श के सप्लीमेंट लेना भी जोखिम बढ़ा सकता है।
यदि आप गर्भधारण के पहले तीन महीने में हैं और ये लक्षण महसूस कर रहे हैं, तो तुरंत डॉक्टर से मिलें:
इनमें से किसी भी संकेत पर देर न करें, क्योंकि शुरुआती चरण में उपचार अधिक प्रभावी रहता है। डॉक्टर अल्ट्रासाउंड करके स्थिति की पुष्टि करेंगे और आगे की योजना तय करेंगे।
भारत में गर्भपात को ‘मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ़ प्रेग्नेंसी (MTP) एक्ट, 1971’ के तहत नियमन किया गया है। यह कानून गर्भधारण के 20 हफ्ते तक (अधिकतम 24 हफ्ते कुछ मामलों में) गर्भपात की अनुमति देता है, बशर्ते दो योग्य डॉक्टर की सहमति हो। कुछ मामलों में, यदि माँ की ज़िंदगी जोखिम में हो या बच्चे में गंभीर विकृति हो, तो यह अवधि बढ़ाई जा सकती है।
गर्भपात करवाने के लिए आपको प्रमाणित क्लिनिक या अस्पताल चुनना चाहिए। अनियमित जगहों पर किए गए ऑपरेशन में स्वास्थ्य जोखिम और कानूनी समस्याएँ दोनों ही हो सकती हैं। इस लिए हमेशा सरकारी मान्यता वाले स्वास्थ्य केंद्रों में इलाज कराएँ।
अंत में, अगर आप गर्भधारण के दौरान किसी भी असामान्य लक्षण को महसूस करते हैं, तो डरें नहीं—पहले डॉक्टर से मिलें, सही जानकारी लें और यदि आवश्यकता हो तो कानूनी मानकों के अनुसार सही कदम उठाएँ। समझदारी और समय पर कार्रवाई से आप अपने स्वास्थ्य को सुरक्षित रख सकती हैं।
इटली के प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी ने G7 शिखर सम्मेलन में गर्भपात पर विवाद को कमतर किया है। मेलोनी ने इस साल की बैठक के अंतिम बयान में 'गर्भपात' शब्द के उल्लेख न होने को सामान्य नीति बताया। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने इस अभाव पर निराशा व्यक्त की। यह विवाद इटली, फ्रांस और अमेरिका के बीच कूटनीतिक संघर्ष का कारण बन गया।