भारत-नेपाल संबंध – क्या है वर्तमान परिदृश्य?

भारत और नेपाल बुरी तरह जुड़े हुए हैं। खुली सीमा, समान धर्म, भाषा और संस्कृति ने दो देशों को हजारों सालों से एक साथ चलाया है। लेकिन आज के समय में सिर्फ दोस्ती से ज्यादा कुछ चाहिए – व्यापार बढ़ाना, जल सुरक्षा, और सीमा पर स्थिरता। चलिए जानते हैं कि अब भारत-नेपाल संबंध कहाँ खड़े हैं और कौन‑से मुद्दे सबसे ज़्यादा चर्चा में हैं।

ऐतिहासिक बंधन और सांस्कृतिक जुड़ाव

प्राचीन काल से ही हिन्दू धर्म ने दोनों देशों को जोड़ा है। कई मंदिर, तीर्थस्थल और त्यौहार दोनों तरफ़ मनाए जाते हैं – जैसे कस्तूरी मन्दिर, बोधगया और उज्जैन। इस वजह से लोग आसानी से एक‑दूसरे के साथ जुड़ते रहे। खुली सीमा के कारण भारतियों को नेपाल में काम, पढ़ाई या पर्यटन के लिए बिना वीज़ा के प्रवेश मिल जाता है। यही कारण है कि रोज़ाना लगभग 30 लाख भारतीय पर्यटक नेपाल के पहाड़ों, झीलों और शहरों में आते‑जाते हैं।

इतिहास में कई समझौते हुए हैं – 1950 का मित्रता समझौता, 1972 का व्यापार समझौता और 1999 का जलसंधि समझौता। इन दस्तावेज़ों ने सीमा के पार लोगों और सामान की आवाज़ को आसान बनाया। आज भी कई भारतीय व्यवसायी नेपाल में स्कूल, अस्पताल और छोटे‑बड़े उद्योग चला रहे हैं, जबकि नेपालियों ने भारत में बहुत सारे छोटे व्यापार और सिविल सेवाओं में भाग लिया है।

आधुनिक चुनौतियों और सहयोग के अवसर

भौगोलिक proximity के कारण सीमा पर कभी‑कभी मतभेद होते हैं। सबसे बड़ा मुद्दा है किनारे का नदी‑वाटर‑शेयरिंग, खासकर कुशिंगा और महाकाली नदियों पर जल‑अधिकार के बारे में। साथ ही, सीमा पर कुछ छोटे‑छोटे निचले‑बिंदु और अनधिकारियों की आवाज़ भी कभी‑कभी खबर बन जाती है। लेकिन सरकारें इन समस्याओं को बातचीत के ज़रिया हल करने की कोशिश करती हैं।

आर्थिक सहयोग की बात करें तो दोनों देशों का ट्रेड‑वॉल्यूम अभी भी कम है – भारत से नेपाल को आयात में 2‑3 % हिस्सा ही है। यहाँ बड़ी संभावनाएँ दिखती हैं। भारत के निर्माण‑उत्पाद, फार्मास्यूटिकल्स और टेक्नोलॉजी को नेपाल में बड़ी मांग है, जबकि नेपाल से फल‑सब्ज़ी, हर्बल प्रोडक्ट्स और टूरिज़्म की संभावनाएँ हैं। नए रॉड‑इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट, जैसे कनेक्ट‑नेपाल रोड, दोनों देशों के व्यापार को आसान बनाने में मदद करेंगे।

सुरक्षा के लिहाज़ से भी सहयोग बढ़ रहा है। भारत ने नेपाल को सीमावर्ती पैट्रोलिंग में तकनीकी सहायता दी है और दोनों देशों के बीच सशस्त्र बलों की संयुक्त ट्रेनिंग भी चलती है। साथ ही, आतंकवाद‑रहित क्षेत्र बनाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय मंच पर मिलकर आवाज़ उठाने का भी चलन है।

भविष्य की बात करें तो शिक्षा, स्वास्थ्य और डिजिटल कनेक्टिविटी में बहुत अवसर हैं। कई भारतीय विश्वविद्यालयों ने नेपाल में कैंपस खोल दिए हैं, और दो‑देशीय छात्रवृत्ति कार्यक्रम बढ़ रहे हैं। टेलीमेडिसिन, ई‑गवर्नेंस और सौर ऊर्जा जैसी नई तकनीकें दोनों देशों के विकास को तेज़ कर सकती हैं।

सारांश में, भारत-नेपाल संबंध दोस्ती से आगे बढ़कर साझेदारी की दिशा में हैं। ऐतिहासिक बंधन मजबूत है, लेकिन आधुनिक समय की चुनौतियों को समझदारी और सहयोग से हल करना जरूरी है। अगर दोनों देश मिलकर व्यापार, जल‑सुरक्षा और डिजिटल पहल पर ध्यान दें, तो आगे का रास्ता काफी उज्जवल दिखता है।

नेपाल के नए 'प्रो-चाइना' प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली का भारत पर क्या असर होगा?
नेपाल के नए 'प्रो-चाइना' प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली का भारत पर क्या असर होगा?

केपी शर्मा ओली चौथी बार नेपाल के प्रधानमंत्री बने हैं। ओली को 'प्रो-चाइना' माना जाता है, जिससे नई दिल्ली की चिंताएं बढ़ गई हैं। ओली भारत की आलोचना करते रहे हैं और नेपाल की चीन पर निर्भरता बढ़ाने की दिशा में कदम उठाते रहे हैं। उनके कार्यकाल में नेपाल-चीन संबंध और मजबूत हो सकते हैं, जिससे क्षेत्रीय शक्ति संतुलन बदल सकता है।

आगे पढ़ें →