नवरात्रि का तीसरा दिन, जो इस साल 24 सितंबर को पड़ता है, माँ चन्द्रघंटा को समर्पित है। वह दुर्गा का उस वीर रूप में आती हैं जिसमें दस भुजाएँ और हाथों में विभिन्न शस्त्र होते हैं, और उनका वाहन शेर या बाघ होता है। उनके माथे पर चाँद जैसा घंटा दिखता है, इसलिए उनका नाम चन्द्र‑घंटा पड़ा। इस दिन उनके लिए सफ़ेद रंग की मिठाई और दूध‑आधारित व्यंजन ख़ास तौर पर पसंद किए जाते हैं, क्योंकि सफ़ेद शुद्धता और शांति का प्रतीक है।
अगर आप घर पर ताज़ी रसमलाई तैयार करना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए स्टेप‑बाय‑स्टेप निर्देशों का पालन करें। सभी चीज़ें पूरी‑फ़ैट दूध और ताज़े नट्स से बनी हों तो स्वाद दो गुना बढ़ जाता है।
ध्यान रहे कि रसमलाई को पूजा के समय में ही तैयार करें, ताकि यह पूरी तरह ताज़ा और शुद्ध रहे।
माँ चन्द्रघंटा की पूजा के लिए तीन शुभ काल निर्धारित हैं: ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4:35 से 5:23 तक), अमृत काल (सुबह 9:11 से 10:57 तक) और विजय मुहूर्त (दोपहर 2:14 से 3:02 तक)। इन समयों में बनाई गई रसमलाई को अंत में भगवान की प्रतिमा/पिंगल पर चढ़ाएँ।
तीसरा नवरात्रि दिन मंडला चक्र (मणिपूर) से जुड़ा माना जाता है, जो साहस, आत्म‑विश्वास और इच्छाशक्ति का केंद्र है। रसमलाई को चढ़ाते समय इस चक्र पर ध्यान केंद्रित करें, तो डर और असुरक्षा कम होते हैं और अंदर से शक्ति उत्पन्न होती है।
पहले दिन स्थापित कलश को इसी प्रकार साफ़ और पवित्र रखें, क्योंकि यह पूरे नवरात्रि की ऊर्जा को बनाये रखने में मदद करता है। रसमलाई में उपयोग किए गए शुद्ध दूध, केसर और नट्स न केवल स्वाद बढ़ाते हैं, बल्कि समृद्धि, शांति और नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा का प्रतीक भी होते हैं। इस प्रकार, माँ चन्द्रघंटा के आशीर्वाद से आपके घर में सुख‑शांति और आध्यात्मिक संतुलन बना रहता है।