अगस्त 2025 का रिकॉर्ड तोड़ मॉनसून: उत्तर से दक्षिण तक बाढ़ की तबाही, 100 से ज्यादा मौतें

अगस्त 2025 का रिकॉर्ड तोड़ मॉनसून: उत्तर से दक्षिण तक बाढ़ की तबाही, 100 से ज्यादा मौतें

सितंबर 1, 2025 shivam sharma

जून से अगस्त के बीच देश में 743.1 मिमी बारिश हुई—यह सिर्फ एक आंकड़ा नहीं, एक चेतावनी है कि बारिश के पैटर्न कैसे बदल रहे हैं। अगस्त 2025 का मॉनसून कई राज्यों में बाढ़, भूस्खलन और बड़े पैमाने पर तबाही छोड़ गया। उत्तर में हिमालयी ढलानों से लेकर दक्षिण के तटीय इलाकों तक, पानी ने शहरों और गांवों की रफ्तार रोक दी। आधिकारिक मौतों का आंकड़ा 100 से ऊपर जा चुका है, और विस्थापितों की संख्या लाखों में है।

भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के मुताबिक अगस्त में पूरे देश में 268.1 मिमी बारिश हुई—सामान्य से करीब 5% ज्यादा। उत्तर-पश्चिम भारत ने 1 जून से 31 अगस्त के बीच 614.2 मिमी बारिश दर्ज की, जो सामान्य 484.9 मिमी से लगभग 27% अधिक है। दक्षिण प्रायद्वीपीय क्षेत्र ने अगस्त में 250.6 मिमी वर्षा पाई—सामान्य से 31% ज्यादा—जो 2001 के बाद तीसरा सबसे अधिक अगस्त रहा।

कहाँ-कहाँ सबसे ज्यादा असर

हिमालयी क्षेत्र जम्मू-कश्मीर सबसे अधिक प्रभावित रहा। तेज बारिश से नदियां उफान पर रहीं, पहाड़ी ढलान खिसके और कई इलाकों में पुल बह गए। श्रीनगर समेत कश्मीर घाटी में झेलम का जलस्तर खतरे के निशान से ऊपर पहुंचा तो प्रशासन ने बाढ़ अलर्ट जारी किए। संचार तंत्र पर चोट इतनी गहरी रही कि कई इलाकों से संपर्क लगभग ठप रहा।

सबसे त्रासद घटनाओं में वैष्णो देवी यात्रा मार्ग पर हुआ भूस्खलन शामिल है, जिसमें दर्जनों श्रद्धालुओं की जान गई। इससे पहले 14 अगस्त को कश्मीर के चिसोटी गांव में मूसलाधार बारिश से आए तेज सैलाब ने कम-से-कम 65 लोगों की जान ले ली थी और 33 लोग लापता हो गए थे। हालात ऐसे बने कि जम्मू क्षेत्र में हजारों लोगों को घर छोड़कर सुरक्षित ठिकानों पर जाना पड़ा और स्कूल बंद करने पड़े।

पंजाब ने दशकों में सबसे खराब बाढ़ देखी। नदियों के उफान और नहरों के टूटने से हजारों हेक्टेयर फसल जलमग्न हो गई। कई जिलों में गांव-के-गांव कट गए। एक स्कूल में 200 बच्चे पानी से घिर गए—रेस्क्यू टीमों ने हालात संभाले, पर यह तस्वीर बताती है कि कितना तेज और अचानक पानी आया। कुछ इलाकों में पानी उतरना शुरू हुआ, लेकिन मिट्टी और मलबे ने जीवन फिर से पटरी पर लाना मुश्किल बना दिया।

हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में क्लाउडबर्स्ट और अचानक आई बाढ़ ने कमजोर ढलानों को तोड़ा। कई पुल ध्वस्त हुए, सड़कें बह गईं और दूरदराज के कस्बे कट गए। उत्तराखंड के धाराली में 5 अगस्त को आई बाढ़ और भूस्खलन ने पूरा कस्बा कीचड़ में दबा दिया। स्थानीय आकलन 70 से ज्यादा मौतों की ओर इशारा करते हैं, हालांकि आधिकारिक गिनती अभी स्पष्ट नहीं है।

उत्तर-पश्चिम में यह बारिश तीनों महीनों में सामान्य से ऊपर रही—जून में 111 मिमी (42% ज्यादा), जुलाई में 237.4 मिमी (13% ज्यादा)। यह सिलसिला अगस्त तक चला, जिससे नदियां लगातार दबाव में रहीं। कई जगह बांधों में रिकॉर्ड जलभराव हुआ, और डाउनस्ट्रीम इलाकों में नियंत्रित पानी छोड़ना पड़ा।

दक्षिण भारत भी पीछे नहीं रहा। प्रायद्वीपीय क्षेत्र में अगस्त की 31% अधिशेष बारिश 1901 के बाद के रिकॉर्ड में आठवीं सबसे ऊंची रही। कुल मिलाकर 1 जून से 31 अगस्त के बीच दक्षिण में 607.7 मिमी बारिश हुई—सामान्य 556.2 मिमी से 9.3% अधिक। इसका मतलब है कि यहां भी शहरी नालों का ओवरफ्लो, निचले इलाकों में जलभराव और तटीय जिलों में रिवर-टू-सी फ्लश की भारी चुनौती देखी गई।

सीमा के उस पार पाकिस्तान में भी हालात बिगड़े। पंजाब प्रांत में 1.67 लाख से ज्यादा लोग विस्थापित हुए, जिनमें से करीब 40 हजार ने पूर्व चेतावनी के बाद स्वेच्छा से सुरक्षित ठिकाने चुने। जून के अंत से शुरू मानसून में पाकिस्तान में 800 से ज्यादा मौतें दर्ज हुईं। भारत की ओर से भारी बारिश के बीच कुछ बड़े बांधों से पानी छोड़ा गया और औपचारिक सूचना पाकिस्तान को दी गई। पाकिस्तान ने तीन नदियों पर अलर्ट जारी करने और सेना की मदद लेने का फैसला किया, क्योंकि निचले बहाव में बाढ़ का दबाव बढ़ गया था।

कारण, चुनौतियाँ और आगे की राह

क्यों इतनी तबाही? दो वजहें एक साथ काम करती दिखीं—चरम मौसम और कमजोर भू-ढांचे। हिमालयी क्षेत्रों पर काम कर रही ICIMOD (इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट) ने जोर देकर कहा है कि ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, मौसम के पैटर्न बदल रहे हैं, और आपदाएं—खासकर बाढ़—लगातार बढ़ रही हैं। पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से पहाड़ी ढलान ढीले पड़ रहे हैं, ऊपर से घाटियों में अनियोजित निर्माण पानी के रास्ते रोक देता है। फिर जब बादल फटते हैं तो नीचे बसे कस्बे सीधे वार झेलते हैं।

IMD के विश्लेषण में भी एक पैटर्न दिखता है—अगस्त में सक्रिय मानसूनी द्रोणियां और बार-बार आने वाले वेस्टर्न डिस्टर्बेंसेज ने उत्तर-पश्चिम में बारिश बढ़ाई। समुद्री हवा की नमी और पहाड़ी टकराव ने बादलों को थमने नहीं दिया। जहां-जहां नदी बेसिन पहले से भरे थे, वहां अतिरिक्त 5-10% बारिश भी बाढ़ का ट्रिगर बन गई।

समस्या सिर्फ पहाड़ों तक सीमित नहीं। मैदानी और शहरी इलाकों में बाढ़ की वजहें अलग पर उतनी ही गंभीर हैं—नदियों के बाढ़क्षेत्र पर अतिक्रमण, तलछट से उथली होती धाराएं, शहरों में कंक्रीट की परत जिससे पानी जमीन में रिस नहीं पाता, और नालों की नियमित सफाई का अभाव। जब रिकॉर्ड बारिश आती है, तो ये सभी कमजोरियां एक साथ खुल जाती हैं।

बांध भी हर सवाल का जवाब नहीं। वे बाढ़ को देर तक थाम सकते हैं, मगर सतत भारी बारिश में सुरक्षा के लिए पानी छोड़ना अनिवार्य होता है। चुनौती यह है कि रियल-टाइम डेटा साझा हो, डाउनस्ट्रीम जिलों तक अलर्ट समय पर पहुंचे और रिहाइशी जेबों की पहले से पहचान हो। इस बार कई जगह समय पर चेतावनी ने जानें बचाईं, पर नेटवर्क टूटने, बिजली कटने और सड़क टूटने से रेस्क्यू की रफ्तार कई घंटों तक रुक-रुक कर चलती रही।

स्वास्थ्य जोखिम भी बराबर बढ़े—गंदे पानी से संक्रमण, सरीसृप या जलीय जीवों के काटने, और ठहरे पानी में मच्छरों के बढ़ने का खतरा। राहत शिविरों में स्वच्छ पेयजल, क्लोरीन टैबलेट, और शौचालय की उपलब्धता उतनी ही जरूरी है जितनी राशन और तिरपाल।

आगे क्या? सितंबर के लिए IMD ने मानसून के सक्रिय बने रहने के संकेत दिए हैं। इसका मतलब है कि पहाड़ी जिलों में भूस्खलन का खतरा बना रहेगा और मैदानी हिस्सों में बड़ी नदियों—जैसे गंगा, यमुना, सतलुज-बीसिन—में स्तर उठ-गिर सकता है। प्रशासन ने तटीय और नदी तटीय गांवों के लिए अस्थायी शिफ्टिंग प्लान तैयार रखने को कहा है। स्कूलों की छुट्टियां बढ़ाने और संवेदनशील पुलों पर यातायात रोकने जैसे कदम भी स्थानीय स्थिति के मुताबिक लिए जा रहे हैं।

नीति के मोर्चे पर असली काम अब शुरू होता है—बाढ़क्षेत्र की दोबारा रेखांकन, संवेदनशील ढलानों पर निर्माण पर सख्त रोक, पहाड़ों में ड्रेनेज बहाली, और शहरों में ‘स्पॉन्ज’ रणनीति (वर्षाजल सोखने के लिए खुले मैदान, झीलों का पुनर्जीवन, और परमेएबल फुटपाथ)। नदी-घाटियों के लिए सैंडबार और रिवर-ट्रेनिंग स्ट्रक्चर की वैज्ञानिक प्लानिंग जरूरी है, ताकि नदी का बहाव नियंत्रित रहे और कटाव कम हो।

कम्युनिटी स्तर पर तैयारी फर्क पैदा करती है। ग्राम स्तर पर आपदा समितियां, स्थानीय नाव/ट्रैक्टर की सूची, ऊंचे सामुदायिक शेल्टर, और परिवार-स्तर का ‘72-घंटे का आपदा किट’—ये सब कागज नहीं, जमीन पर होना चाहिए।

  • ऊंचे-नीचे इलाकों का नक्शा घर में रखें और सुरक्षित रास्तों की заранее पहचान करें।
  • बारिश की चेतावनी मिलते ही मोबाइल चार्ज रखें, पीने का पानी और सूखा राशन अलग रखें।
  • नदी के किनारे, पुलों और नालों के पास सेल्फी या वीडियो बनाने से बचें—एक पल की गलती जानलेवा हो सकती है।
  • कीचड़ या तेज बहाव में पैदल न उतरें—30 सेमी पानी भी कार को बहा सकता है, 15-20 सेमी बहाव इंसान को गिरा देता है।
  • राहत शिविर में साफ पानी के लिए उबालना/क्लोरीन टैबलेट और बच्चों के लिए ORS जरूर रखें।

इस बारिश ने साफ कर दिया है कि जोखिम अब ‘असामान्य’ नहीं रहा। मौसमी सिस्टम ज्यादा ऊर्जा लेकर आ रहे हैं, और हमारी बस्तियां अभी उतनी मजबूत नहीं हुईं। सितंबर में मानसून के सक्रिय रहने के साथ फोकस दो चीजों पर होना चाहिए—जान बचाने वाली शुरुआती चेतावनी और तेज रेस्क्यू, और इसके साथ पुनर्निर्माण जो अगली बारिश में भी टिके।